शुक्रवार, 11 मार्च 2011

अर्जुन जी... तो आप भी लम्बे समय के लिए स्वीकार किये जायेंगे


34वाँ राष्ट्रीय खेल झारखंड में कई वर्षों से टल रहा था। झारखंड सरकार एवं झारखंडियों के लिए यह खेल एक चुनौती बना हुआ था, उसी तरह 35 वर्षों से लंबित पंचायत चुनाव भी, लेकिन एक झटके में सूबे के मुख्यमंत्राी अर्जुन मुण्डा ने दोनों चुनौती को इस प्रकार स्वीकार किया जैसे मानो बच्चों  का खेल हो। और सचमुच में दोनों चुनौतियों को बच्चों के खेल की तरह ही संपन्न कराकर यह साबित कर दिया कि ‘जहाँ चाह वहाँ राह’ की बात सही है। 
वर्षों से कई अध्किारियों और मंत्रियों ने भ्रष्टाचार और घोटालों का जो टीका झारखंड के माथे पर लगाया था, वह कुछ हद तक धूमिल  हुआ है, लेकिन पूरी तरह मिटा नहीं है। झारखंड के माथे पर सिर्फ घोटाला और भ्रष्टचार का ही कलंक नहीं है, अपितु कई प्रकार के कलंकों का टीका भी है, जिसको मिटाने की चुनौती सभी चुनौतियों से बड़ी है, जिसे अर्जुन मुण्डा को स्वीकार करना होगा। तभी सब कुछ सूबे में ठीक-ठाक हो सकता है। सूबे की 85 प्रतिशत आबादी अभी भी दो जून की रोटी से वंचित है, मूलभूत सुविधओं से वंचित है।  सिर्फ शहरों में कुछ मुट्ठी भर स्वार्थी-बिचौलियों के विकास को ही पूरे सूबे का विकास नहीं माना जा सकता। शहरों में भी 60 प्रतिशत आबादी दो जून की रोटी के लिए तरसती है, ग्रामीण इलाकों का तो कहना ही क्या, जहाँ 2 दिनों पर एक शाम की रोटी मिल पाती है। वहीं सरकार के भ्रष्ट अधिकारियों के कारण अनाज को सरकारी गोदामों में सड़ा दिया जाता है या फिर जमाखोरों, कमीशनखोरों,  बिचौलियों के गोदामों तक पहुंचा दिया जाता है। आवंटित विकास की राशि का बंदरबांट कर ली जाती है। जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पाती। 
अतः श्री मुण्डा को पुनः एक बार खेल वाली इच्छा शक्ति को दिखाने की जरूरत है, यदि आप फेल हुए सिस्टम को दुरुस्त करने की चुनौती को स्वकारेंगे तो आप भी राज्य के लिए लम्बे समय तक स्वीकार किये जायेंगे। आप भी खुश रहेंगे, जनता भी खुश रहेगी। 
अरुण कुमा झा, संपादक 

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