गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

झारखंड के निवाला चोर




सवाल इस बात का नहीं है कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की सम्पत्ति 2000 करोड़ की है या 4000 करोड़ की या इससे भी कहीं ज्यादा। सवाल यह भी नहीं कि मधु कोड़ा के कितने ठिकाने हैं, किन-किन ठिकानों में क्या मिले। यह भी सवाल नहीं है कि उन्होंने कितने और किन-किन देशों में किस-किस के माध्यम से खरीदारी की या खपाये। सवाल यह भी नहीं है कि उनके होटल ज्यादा है कि घर या जमीन-जायदाद या खदानें या रिसोर्ट या और कुछ। सवाल यह भी नहीं है कि उनके गिरोह के कितने चेहरे सामने आये और कितने चेहरे छुपे हुए हैं। सवाल यह भी नहीं है कि 64 करोड़ का वोफोर्स घोटाला, 1.60 करोड़ का दूर संचार घोटाला, 950 करोड़ का चारा घोटाला, 135 करोड़ का ताज कोरिडोर घोटाला से मधु कोड़ा एण्ड कम्पनी का घोटाला कितना बड़ा है। सवाल यह है कि राज्य का मुखिया, राज्य की जनता का प्रतिनिधि राज्य की जनता का खेवनहार कैसा हो? सवाल यह है कि ये तमाम पैसा मधु कोड़ा के पसीने की कमाई नहीं है। जनता के पसीने की कमाई है। वड़ी कम्पनियों ने अपने हित में काम करवाये। कोई भी लाखों-करोड़ों से मधु कोड़ा पर अर्पित किये होंगे, तो निश्चय ही करोड़ों से ऊपर की कमाई का लक्ष्य भी उनका रहा होगा। न ही व्यापारियों ने, न ही कोड़ा एण्ड कम्पनी ने झारखंड का हित देखा, न ही झारखंड की जनता का हित देखा। पैसे के सामने जनता का हित दब गया और व्यक्तिगत हित सर्वोपरि हो गया। आदिवसी हितों के लिए झारखंड बना, आदिवासी हितों के लिए जार-जार रोने वाले नेताओं ने आदिवासियों के आँसू और खून बेच दिए। 680 दिन में सड़क से अरबपति बनने वाले मधु कोड़ा की इच्छाएँ, आकाक्षाएँ इतनी ऊँची होगी, किसी केा पता भी नहीं चला। यह तो समय ही बताएगा कि जनता को बेचकर अरबपति बनने का रिकाॅर्ड क्या यही बड़ा होगा या यह रिकाॅर्ड भी टूटेगा? सितम्बर 2006 में एक निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा के हाथों में सत्ता आयी, तो किसी को क्या पता था कि उनके हाथों में सत्ता भ्रष्टाचार के कालीन पर चढ़कर आयी है। और वे इस भ्रष्टाचार के कालीन में सोने-चाँदी और हीरे की कशीदाकारी करेंगे। अब जनता को ये बात समझ में आ रही है कि कांग्रेस, झामुमो और राजद क्यों मधुकोड़ा के सामने हार लेकर खड़े थे। क्यों ये तथाकथित बड़ी पार्टियोें से लेकर निर्दलीय तक मधु कोड़ा के सामने नतमस्तक थे। जाहिर है अपने पूर्व के मंत्रित्त्व काल में उन्होंने जो कमाई की थी, उसे ही बिछा दिया था, जिस पर चलकर ये लोग मधु कोड़ा की सरकार बनाने आये थे। जाहिर है, जो नंगा खड़ा हो उसके सामने नंगा खड़ा होने में क्या लाज! इसी का नतीजा हुआ कि बंधु तिर्की, कमलेश कुमार सिंह, भानू प्रताप शाही, दुलाल भूईंया, चन्द्रप्रकाश चैधरी, एनोस एक्का जैसे तमाम लोगों ने मधु कोड़ा के साथ मिल कर नंगा नाच किया। झारखंड अलग राज्य बना, तो आँकड़ों के अनुसार सत्ता भाजपा की झोली मंे आ गिरी। भाजपा को एक ऐसा आदिवासी नेता की तलाश थी, जो उसके अनुसार चले। वो नेता सीधे-सादे आदिवासी हो तथा भाजपा के उस मिथक को भी तोड़े, जो उसके साथ जुड़ा था कि यह व्यापारियों की पार्टी है। इस बिन्दूओं बाबूलाल मरांडी खरे उतरे और उनके हाथों में सत्ता आ गयी। पर सत्ता मिलते ही वे सत्ता के मद में बौरा गए। और पार्टी से अलग हट कर अपनी कार्यशैली अपना ली। मनमानी करने लगे और भ्रष्टाचार के बीज भी बो दिये। झारखंड के सरकारी सिस्टम में। बाबूलाल मरांडी ने दलाली और ठेकेदारी प्रथा की परम्परा कायम की, साथ-ही-साथ डोमिसाइल जैसे आगलगाऊ घटना को अंजाम तक पहँुचाया। परिणामस्वरूप उन्हंें सत्ता से हाथ धोना पड़ा। बाद में अर्जुन मुण्डा आये फिर उसके बाद मधु कोड़ा। सभी ने बाबूलाल मरांडी द्वारा विकसित की गयी ठेकेदारी और दलाली की परम्परा को जिन्दा रखते हुए वे भ्रष्टचार को मान्यता प्रदान की। जिसका परिणाम हुआ कि मधु कोड़ा के आते-आते भ्रष्टचार के बीज एक वटवृक्ष बन गया। बीच के जो भी पात्र थे, वे सत्ता-सुख और भ्रष्टचार की चादर ओढ़कर राज करते रहे। सुदेश महतो जैसे मंत्रियों ने कमाई भी की और बारात की पार्टी जम कर खाई और धीरे से खिसक लिए। झारखंड की सड़कों की हालत देखकर झारखंड की जनता सुदेश महतो पर ऊँगली तो उठाती है, पर कुछ बोल नहीं पाती। झारखंड की जनता करे भी तो क्या करे। झारखंड की विधानसभा के भ्रष्टाचार के किस्से, कारनामे तो सबकी जुबां पर है। झारखंड की विधानसभा अध्यक्षों द्वारा की गयी मनमनानी नियुक्ति, उपहार बाँटने और अपने मनमुताबिक किये गये खर्चे और बेहिसाब कार्यों को काफी प्रसिद्धि मिली। यह ठीक है कि मधु कोड़ा पकड़े गये, कुछ और मंत्री पकड़े गये, पर यह संख्या कुछ भी नहीं है। यह संख्या सैंकड़ों में हो सकती है। अरबों-खरबों की सम्पत्ति हो सकती है। झारखंड की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है और झारखंड के मंत्री अरबों में खेलते-खाते रहे। यह ठीक है कि जो पकड़े गये, उन पर छानबीन बरसों चलेगी। यदि कोई राजनीति हस्तक्षेप या राजनैतिक सौदेबाजी नहीं हुई, तो सजा भी मिल सकती है। सम्पत्ति भी जब्त हो सकती है। पर क्या इससे झारखंड की जनता के साथ भावनाओं से किये गये खिलवाड़ की भरपाई हो पायेगी? नेताओं की नैतिकता का इतना पतना हो गया है कि वे सजा से धबड़ाते तक नहीं। चारा घोटाला से या और भी कोई घोटाला रहा हो, किसी से किसी ने कुछ भी नहीं सीखा। न डर लगा सब यही कहते हैं। इससे क्या होगा? राजनीति में निडरता ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है और यही हो भी रहा है। चुनाव होने वाला है। यह तो समय ही बतलाएगा कि कौन-कौन चुनकर आते हैं, पर जो चुनकर आयेंगे उनकी क्या गारंटी कि वे इस परम्परा से अलग हट कर नई, जनहितकारी और ईमानदार परम्परा को विकसित करेेंगे! झारखंड की जनता लूटी जाती है, तो इसलिए कि वह सीधी-सादी है, गूंगी है, वह विरोध या विद्रोह नहीं करती। आज जनता में इतनी समझ या विरोध-विद्रोह करने की समझ होती, तो मधु कोड़ा एण्ड कम्पनी या और कोई हो इन लोगों की इतनी हिम्मत ही नहीं होती। जिन राज्य की जनता मरी होती है, वहाँ इसी तरह से राज्य चलता है और चलता रहेगा। दोष जनता का ही नहीं देश को चलाने वाली पार्टियों का भी है। छोटी से छोटी बातों को लेकर जुलूस और जलसा करने वाले, सड़कों पर बैनर देकर बेजुबान लोगों को सड़क पर उतार कर नारे लगाने और लगवाने वाले सभी की बोलती बंद है, तो इस लिए कि मधु कोड़ा के पत्तल से जूठन सबने खाये हैं।

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