रविवार, 26 अप्रैल 2009

लोक तंत्र का महापर्व है ...जनता को बेवकूफ बनते चलो..

लोकतंत्र का महापर्व है..... जनता को बेवकूफ बनाते चलो... लोकसभा चुनाव का महापर्व आ गया है. बड़े-बड़े शूरमा मैदान में उतरने के लिए दिमागी और जुबानी कसरत कर रहे हैं. जो जितने झूठ और शातिराना बयान बोलेगा उसके लोकतंत्र का देवता बनने के उतने ही ज्यादा अवसर होंगे. इन्द्र देव की सभा सरीखी संसद मंे पूरे 543 देवता 5 साल के लिए विराजमान होते हैं. इसलिए देवगण आजकल गाना गा रहे हैं, ताल से ताल मिलाते चलो.....जनता को बेवकूफ बनाते चलो...... अब भले ही अपने पुराने वादों को भूलाना पड़े या फिर सिद्धांतों से समझौता करना पड़े. यहाँ तक कि छाती ठोक-ठोक कर बोले गए अपने बोलों को वापस अपने मुँह में लेना पड़े. लोकतंत्र के माहपर्व से पहले यही तो हो रहा है. लालू, मुलायम और पासवान हाथों में हाथ डालकर सोनू निगम का गाना गा रहे हैं... वो पहली बार जब हम मिले... हाथों में हाथ डाल जब हम चले....हो गया ये दिल दिवाना... होती है क्या सत्ता हमने जाना.... इधर अम्मा को फूटी आँखों नहीं सुहाने वाली पीएमके ने जयललिता की ऊँगली पकड़ ली. बच गये मनमोहन और सोनिया दोनों मिलकर इंग्लिश स्टाईल में टू-टू जा थ्री. का गुणा-भाग करके 272 को जोड़ करने में जुटे हैं. आडवाणीजी आरएसएस...आरएसएस करते हुए वरुण-वरुण कहने लगे हैं. आखिर इन्द्रसभा में एक देवता का नाम वरुण देव भी तो था. वो वरुण देव कम उम्र के थे..... और ये वरुण भी 29 साल का नौजवान हैं. इन्द्रसभा की महारानी बनने के लिए मायावती हाथी पर चढ़कर हुंकार लगा रही है. लेकिन लाल चिल्लाने वाले लाल झंडे के पीछे छुपकर ललचाई नजरों से महापर्व के बाद होने वाली भेंट पर नजर गड़ाए हुए हैं. लेकिन इन सब के बीच उन देवगणों की याद भी आती है. जो इस महापर्व मंे दिखाई नहीं देने वाले हैं. कोई बीमारी के कारण, तो कोई अपने रिटायरमेंट के कारण, किसी के आड़े बढ़ती उम्र आगे आ गई है, तो किसी ने बेटे-बेटी या पोते-पोती के लिए कुर्बानी दे दी है. मगर इसके बावजूद उनके दिल गेंदापफूल की तरह खिल रहे हैं. और यही कह रहे हैं, ‘ताल से ताल मिलाते चलो... लोकतंत्र का महापर्व है... जनता को बेवकूपफ बनाते चलो.

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