साल तो याद नहीं है। राँची जेल में बंद ठगसम्राट ‘नटवरलाल’ से जब मैंने यह पूछा कि आप बड़े-बड़े अध्किारियों और अन्य लोगों को कैसे चकमा देकर ठग लेते हैं, तब उन्होंने मुझसे कहा, ‘भैया, दुनिया में जब तक लालची लोग रहेंगे, मेरे जैसे लोग पनपते रहेंगे।’ कहने का आशय यही है कि जब तक हम अपने लालच से नहीं छूटते, तब तक हमारे आचरण से ‘भ्रष्टचार’ समाप्त नहीं हो सकता।
हम झारखंड को लेकर रो रहे हैं कि ‘भ्रष्टचार’ का पर्याय बन गया है ‘झारखंड’, लेकिन नहीं, भ्रष्टाचार के ‘अजगर’ ने आज भारतीय मानस में अपनी पैठ इस प्रकार से बना ली है कि इसे निकालना अब मुश्किल हो गया है।
फोन टेपिंग के मामलों से लेकर खेलगाँव हो, या इसके अन्य ‘अनुषंगी’ इकाई इनके तो कहने ही नहीं! खैर! हम झारखंड और बिहार की बात करें। 10 वर्षीय बालक झारखंड फिल्म ‘पा’ का एक पात्रा बन कर रह गया है। कारण क्या है?
यही लालच! नेता-अधिकारी -ठेकेदार-पत्रकार-साहित्यकार-चिकित्सक-शिक्षक और कौन! सभी ने लालच के अजगर को अपने मानस में सहस्रफण के रूप में स्थापित कर लिया है। परिणाम हमारे सामने है। ठेकेदार-नेता तो पहले से ही भ्रष्टाचार के पर्याय बने हुए हैं। जिस पर समाज को आज तक नाज नाज था, वह महकमा तो दुर्गंध् फैला रहा है। अंतिम भरोसा लोकतंत्रा के चौथे पाये कहे जाने वाले पहरुओं पर था, वह भी अब ‘बिकाऊ माल’ बन कर रह गया है। रातो-रात लाखपति ही, नहीं अरबपति बन जाने की चाह! उन्हें यह मौका कौन दे रहा है? यह एक अहम सवाल है। इसका सही जवाब है राजनीति और सिर्फ राजनीति। जनता तो पशु बनी हुई है, चारे की प्रतीक्षा में है।
बिहार सुशासन की ओर अग्रसर है, तो इसलिए कि वहाँ की राजनीति के एक घटक का मुखिया निश्चित रूप से लालच और भय से ऊपर उठ चुका है। लालची व्यक्ति भयभीत रहता है और भयभीत व्यक्ति अपराध्ी प्रवृत्ति का होता है। यही तीन तत्त्व हमारे आचरण में ‘लालच रूपी अजगर’ को पालने का काम करते हैं! जो सुशासन की ओर बढ़ना चाहेगा, उसे लालच और भय से ऊपर उठना ही पड़ेगा।
sundar....aakarshit karane vala cover page hai badhai...
जवाब देंहटाएंnice
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