शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

सरकारी नाक

वैसे तो सैकड़ों, हजारों  लोग मरते हैं।
गाँव में मरा था एक आदमी।
उस आदमी की मौत की खबर
जैसे ही आई, अखबार के पहले पन्ने पर
कि फलां गाँव का फलां आदमी भूख से मर गया।
.....और सुबह
अखबार पढ़ने के साथ ही
सारा का सारा प्रशासनिक महकमा
यह साबित करने की योजना
बनाने में लग गया कि
उस आदमी की मौत
भूख से नहीं, बल्कि बिमारी से हुई है।
उस आदमी की मौत
सरकार की नाक है।

जो आदमी मरा
वह कोई साधरण आदमी नहीं था
वह गरीबी रेखा के नीचे का आदमी था।
जिसके लिए सरकार करोड़ों अरबो
खर्च कर रही है।
सैकड़ों योजनाएँ बना रही है।
सौ दिन खाने का इंतजाम पक्का
कर रही है।
सरकार ने इतने इंतेजाम किये है कि
सरकार जाये तो जाये, पर
एक आदमी जा नहीं सकता।
फिर वह आदमी मर कैसे सकता है।
सरकार की नाक कैसे कट सकती है?
अखबार वाला सेंससेशनल न्यूज बनाता है,
बेचता है और खाता है।
कल के अखबार में यह न्यूज गायब हो जायेगा।
नाहक यह न्यूज कुछ अफसरों का तबादला करवायेगा।
विजय रंजन

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