रविवार, 25 अक्टूबर 2009

करेजवा में तीर


 ‘‘का ठाकुरजी! झारखंड के का हाल-चाल है? ठीके चल रहा है न?’’ हरिशंकर बाबू व्यंग्य मारते हुए बोले। ठाकुरजी मुँह टेढ़ा करते हुए बोले, ‘‘ठीके और खराब से का मतलब है, आपका। सड़ल तालाब मंे इ काना में नहाइए चाहे उ कोना में। देहवा तो कहीं भी नोचेगा। एही हाल है, झारखंड का और का। ड्राइवर केतनो बदल दीजिए खटारा गाड़ी खटारे चलेगा।दनदनाएल कहाँ से चलेगा। झारखंड से जादे उम्मीद मत लगाइए।’’ सिगरेट का कस खीच कर गोल-गोल छोड़ते हुए तिवारीजी बोले, ‘‘आपलोग को तो खिलाफ बोलने का आदत पड़ गया है। देख नहीं रहे हैं विकास के काम में तेजी कितना हो गया है। डीसी साहेग से लेकर बीडीओ साहेब तक परेशान हैं। अपने स्टाफ को दौड़ा रहे हैं। गाँवे-गाँव। ले ले भइया लेले भइया। कुछ लेले। हमरा नौकरी बचा ले। गाय, बकरी कुछ लेले। कुछ नहीं तो राशन दूकान ही लेले।’’ ठाकुरजी बीच में ही बोल पड़े, ‘‘हम कुछ बोलेंगे, तो आप को अच्छा नहीं लगेगा। अरे घानी में जइसे बैल को दिन भर लगाया जाता है, पर रहता है ओतने दूर में। वही हाल है, झारखंड के हाल। वही ढाक के तीन पात।’’ हरिशंकर बाबू से रहा नहीं गया, बोले, ‘‘अब चाहे जो कह लीजिए। झारखंड में टू-इन-वन शासन चल रहा है। एने स्वीच करिएगा, तो महामहिम चैनल उधर स्वीच करिएगा, तो सुबोध भइया चैनल। मइयाजी खुश होके एगो विज्ञापन वाला विभाग दे दिये है, उ विभाग में कोई काम थोड़े है, सो विज्ञापन बाँटते हैं। बदले में खुब छपते हैं और पड़ल रहते हैं महामहिम के यहाँ। समझ लीजिए झाखंड दो सीम वाला मोबाइल है। एगो सुबोध सीम दूसरा महामहिम सीम।’’ तिवारीजी सहमत होते हुए बोले, ‘‘हरिशंकर बाबू बतवा तो ठीके बोलते हैं। अखबार में फोटोइया देख के पते नहीं चलता है कि उद्घाटन महामहिमजी कर रहे हैं कि सुबोध भईया।’’ पलटनवा न जाने कब से सुन रहा था, ’’काहे आप लोग सुबोध भईया के पीछे हाथ धो के पड़ गये हैं। झारखंड में कम से कम एक गो नेता तो है। बाकी बाजार में होले-लेले कर रहे हैं। तू हमर पर थूको हम तुम पर थूकेंगे। चल रहा है।’’ बिन बादल बरसात के कीचड़ होते देख कर हरिशंकर बाबू बोलो, ‘‘आपलोग को कोई टौपिक नहीं मिलता है, जब देखिए तब पोलटिक्स का टंगड़ी पकड़ कर बैठ जाते हैं। दशहरा है, दीवाली है, सरस मेला है, खादी मेला है। विकास मेला है। इ सब बात नहीं करिएगा। तो बस पोलटिक्स चैनल खोलके बैठ जाइएगा। कभी बाबा रामदेव का चैनल देखिए। कभी इंडिया टीवी देखिए। देख नहीं रहे हैं, रावण, सीता, लंका, हनुमान सब खोज निकाला है। बिना कपड़ा वाला फैशन टीवी देखिए।’’ अचानक तिवारी जी को कुछो याद आ गया, उन्हंे हँसी आ गयी। वो हँसी रोकते हुए बोले, ‘‘अरे आजकल जानते हैं कि नहीं सुबह-सुबह ज्योतिष चैनल खुल जाता है। एगो कोई पंडितजी बता रहे थे कि नहा धो कर अपना पुराना मोजा दान कीजिए। अब बताइए, जिसको दीजिएगा, दौड़ा के मारेगा कि नहीं! मनोरंजन के लिए हम तो थोड़ा देर सुनते हैं। बड़ा मजा आता है।’’ हरिशंकर बाबू भी हँसे बिना नहीं रह सके, बोले, ‘‘आप भी बीच-बीच में फूलझड़ी छोड़ते रहते हैं।’’ तपाक से पलटनवा बोला, ‘‘ अरे, अरे, याद दीवाली भी पास में है, दीया-बत्ती खरीदे कि नहीं?’’ ठाकुर जी बोले, ‘‘अरे नहीं खरीदे हैं। मेला में खरीदेंगे। जयनन्दूजी वाला मेला लगा है न सुने हैं कि इ बार सरस को खरीद लिए हैं।’’ इस पर हरिशंकर बाबू चुटकी लेते हुए बोले, ‘‘ए भाई चाहे जो हो मेला में जयनन्दू भइवा एक से एक पड़ाका खोज के लाते हैं। देखिएगा, तो देखते रह जाइएगा! करेजवा में तीर धँस जायेगा।’’ ‘‘का बुढ़ारी में इ सब बोलते रहते हैं, हरिशंकर बाबू! अब आपको शोभा नहीं देता‘‘ पलटनवा थोड़ा सकुचाते हुए बोला। हरिशंकर बाबू पलटवार करते हुए बोले, ‘‘का रे पलटनवा हमको बूढ़ा बोलता है रे! आजकल तो जवानी वाला टैबलेट मिलता है। अखबार में विज्ञापन नहीं देखा है का। हमको बूढ़ा बोलता है अरे, जाके जयनन्दूजी के बोल कि अब आपको तबला बजाना अच्छा नहीं लगता। बूढ़ा हो गये मीराजी वाला सितार बजाइये।’’ तिवारीजी हँसी रोकते हुए बोले, ‘‘अभी दीवाली में देर है, अभीए से काहे पड़ाका फोड़ रहे हैं। दीवाली में फोड़िएगा, तो अच्छा लगेगा। इ सब बात छोड़िए। दो-दो हाथ होना चाहिए, दीवाली में। ठाकुरजी ठीक है न। आ जाइए। कोनो डर नहीं है। ठीके है। चलिए अब कल मिलते हैं... फिर इसी चैराहा पर।
रंजन श्रीवास्तव 

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