मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

मंचों का ठाट


संदर्भ हिन्दस्वराज का शताब्दी वर्ष
मंचों का ठाट





 सजगजागरूक भारतीय के मन में एक विचार कौंधता  हैगांधीजी आज यदि जिंदा होतेतो उनकी स्थिति क्या  होतीगांधीजी यदि आज होतेतो भारतीय राजनीति  और करोड़ों जनता की स्थिति क्या होती?
 अच्छा हुआ गांधीजी हमारे बीच नहीं हैं। स्वतंत्रता के  ध्वजवाहक गांधीजी तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद,स्वतंत्रता  के जश्नों में डूबे राजनीतिज्ञों द्वारा नकार दिये गये थे। एक  तरपफ सत्ता के लिए भारत के धुरंधर राजनीतिज्ञ तोड़-जोड़  में लगे थेदूसरी ओर गांधीजी बंद कमरे में एक कुर्सी पर  पड़े मायुसी के साथ आँसू बहा रहे थे।
गांधीजी नहीं हैंतो क्या हुआ। गांधीजी के विचार आज भी जिंदा है,कल भी रहेगा। अफसोस तो इस बात का है कि गांधीजी कोगांधीजी के विचारों को इन राजनीतिज्ञों ने मंचों का ठाठ बना लिया है। मंच पर खड़े होकर गांधीजी के विचारों का बखान करने वाले ये माननीय नेतागण मंच से उतरते ही गांधी को भूल जाते हैं। अपने घरों में या अपने कार्यालयों में गांधीजी की तस्वीरें तो लगाते हैंपर उसी कमरे में बैठकर गांधीजी के आदर्शो को भूलकर देश को बेचते हैं। ‘‘गांधी का खादी’’ अब गरीबों का नहीं रहा। अपने काले कारनामों को सफेद दिखाने के लिए खादी इन राजनीतिज्ञों के लिए एक लबादा मात्रा बन कर रह गया है।
सत्य और अहिंसा के मार्गदर्शक गांधी के इस देश में हिंसा लता की तरह सारे देश में कैसे फैल गयागांधीजी के विचारों को असर इन नक्सलियों,अलगाववादियोंदेहद्रोहियों पर क्यों नहीं होताइन संस्थाओं के बौद्धिक मंचों की बुद्धि कुंभकरर्ण की तरह क्यों सोयी पड़ी हैगांधीजी तो राम के भक्त थे, वे स्वयं राम भी थेजो 14 वर्षों का वनवास खत्म होने के पहले ही लंका पर विजय भी पा ली थी, पर गान्धीजी का वनवास लम्बे समय तक चल सकता है. वैसे भी समय तो इंतजार कराता ही है। हजारों वर्षों तक तप भी करने पड़ते हैं। आशा ही इंसान को जिंदा रखती है। आज अंधेरा हैतो कल उजाला होगा ही। गांधीजी के विचार भले ही आज काल कोठरी में पड़ा हैकल वह निकलेगा। सत्य अहिंसा की खुशबू बिखेरेगा।



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अरुण कुमार झा 
प्रधान संपादक
दृष्टिपात हिंदी मासिक
रांची, मोबाइल नंबर ०९३०४६९७६८७/ 0963121877

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