ठाकुर जी! एगो कहानी सुने हैं कि नहीं, अकबर-बीरवल वाला?एक बार बीरवल ने महाराज अकबर को बताया कि राजा और लड़का के रूपमें राजा से बड़ा लड़का के बाप होता है। लड़का के बाप के सामने राजा का कुछो नहीं चलता है। एक बार राजा को बीरवल ने एगो लड़का वाला के यहाँ ले गये और जैसे ही बताया कि राजा अपनी अपनी लड़की की शादी के लिए आये हैं, लड़के के बाप का तेवर बदल गया। तब राजा को समझ में आ गया कि राजा से बड़ा लड़के का बाप होता है। वही हाल राजा मनमोहन सिंह जी का है। निर्माता, होलसेलर, दुकानदार जेकरा मन जेतना दाम बढ़ा दे रहा है और राजा के कुछो चलिए नहीं रहा है। राजा बोल रहे हैं कि भइए यही हाल रहेगा। दुकान वाला सब लड़का के बाप है, जो चाहे बोलेगा। जो चाहे मांगेगा। जेतना चाहे दाम बढ़ा लेगा। मनमानी करेगा। अरे हम तो लड़की के बाप हैं। सिर झुका के खड़ा हैं। हम कुछो नहीं कर सकते हैं। एक तरफ सेन्सेक्स और निफ्टी बढ़ रहा है। सोना के भाव बढ़ रहा है। दूसरी तरफ आलू-प्याज से लेकर चीनी, तेल, चावल-दाल तक के भाव बढ़ रहे हैं। भइए का कीजियेगा। बाजार का ये हाल है, ग्राहक पीला और दुकानदार लाल है।’’ तिवारी जी लगातार बोले चले जा रहे थे, रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बीच में ही हरिशंकर बाबू तिवारी जी को रोकते हुए बोले, ‘‘बस कीजिए तिवारीजी। एक सांस मे सब बोल जाइयेगा कि थोड़ा दम भी लीजिएगा। दम लीजिए। नया राज्यपाल महोदय आये हैं, सब ठीक हो जोएगा। एक बार सब को नापेंगे, तो सब ठीक हो जायेगा। देख नहीं रहे हैं, रोज मिटिंग कर के अफसरवन के डांट रहे हैं। का ठाकुर जी ठीक बोल रहे हैं न?’’ ‘‘ठाकुर जी का बोलेंगे। राज्यपाल जी का कर लेंगे। उ तो एलेक्शन कराने आये हैं, सो एलेक्शन की तैयारी कर रहे हैं। एलेक्शन में जइसे नेतवन लोग हड़िया-पैसा बाँट के वोट खरीदता है, वैसे ही दनादन मुफ्त में अनाज बँटवा रहे हैं, लुटवा रहे हैं। सुखाड़ के नाम पर। नाम सुखाड़ के, काम एलेक्शन के।’’ तिवारी जी ऐसा भड़क रहे थे, बुझने का नामे नहीं ले रहे थे। एक गिलास गटागट पानी पी गये और फिर चालू हो गये, ‘‘पेट में अनाज नहीं और सब गरीब को चीनी मिलेगा। अरे उपवास में पेट खाली है, तो चीनी के शरबत पी लो। भुख नहीं लगेगा, और का।’’अब ठाकुर जी से रहा नहीं गया, बोले, ‘‘शात हो जाइए तिवारीजी! देखिए सब ठीक हो जाएगा। देखिएगा अकाल, सूखा और भूख से एको आदमी नहीं मरेगा’’फिर तिवारीजी भड़क गये, ‘‘बस आप लोग को तो एक गो मुद्दा मिल गया है, सूखा। अरे भूख से नहीं मरेगा। मलेरिया से मरेगा न। नक्सल के गोली से मरेगा। और नाक सीधे छूओ चाहे, घुमा के, एके बात है। सूखा ले के रोजे मिटिंग हो रहा है। आप एगो कहावत सुने थे कि नहीं? ‘‘पिछला बाढ़ में घर बन गया, तो इस सुखाड़ में लड़की की शादी कर लेंगे’’।’’इस पर हरिशंकर बाबू बोले, ‘‘ठाकुरजी जाने दीजिए, झारखंड मंे कफन में भी लूट है। झारखंड है भाई, झारखंड! आज तिवारी जी बोल लेने दीजिए। मन का भड़ास निकल जाएगा, तो ठीक होगा। जैसे रोने से मन हल्का हो जाता है, वैसे ही बोल लेने से मन शांत हो जाता है। का करें तिवारीजी, छः महीना से तलब नहीं मिला है। कोई सुने वाला नहीं है। पहिले वाला राज्यपाल से मिले ला टाइम मांगे थे। नहीं मिला। सो भड़कना वाजिब है। इनको बोल लेने दीजिए मन हल्का हो जाएगा।’’अब तिवारीजी शांत भाव से बोले, ‘‘देखिए आज लोग हमरा बात को मजाक बना कर ले रहे हैं। हम मजाक नहीं कर रहे हैं। देख नही रहे हैं कि अनाज लुटा रहा है। अफरा-तफरी है काहे। सिस्टमे अइसा है। लाल-कार्ड, पीला कार्ड, राशन कार्ड, वर्षों से बन रहा है, आखिर छूट क्यों जाता है। क्यों गलत बन जाता है? एक गाँव में 100-50 कार्ड बनाना है। 1000-500 राशन कार्ड बनाना है या चार-पाँच हजार वोटर लिस्ट बनाना है। कइसे गलती हो जाता है? जिम्मेदारी दीजिए। 10 गो को जेल भेज दीजिए। देख लीजिए सब ठीक हो जाएगा। एक गो भी गलती नहीं बनेगा। गलती हो गया तो किसका बिगड़ेगा। किसी का नहीं। इतने में ठाकुजी बोले, ‘‘तिवारीजी बतवा तो ठीके बोल रहे हैं। गंभीरता से कुछो कामे नहीं होता है। 60 वर्ष हो गये, आज तक मतदाता सूची ठीक से नहीं बना। राशन कार्ड सही से नहीं बना। लाल कार्ड ठीक से नहीं बना।’’अभी बोलिए रहे थे कि उधर से मिसिर बाबा स्कूटर पर गैस सिलिंडर लेके आ गये। और आते ही बोल पड़े, ‘‘चलिए आज जा के गैस सिलिंडर मिला है। साला 50 रुपया ब्लैक में मिला है। एजेंसी में तो गैस सिलिंडर मिलता ही नहीं, जइसे सिनेमा घर में नया पिक्चर लगता है और खिड़की खुलते ही सब टिकट खत्म हो जाता है। और बाहर में 100 रुपया ब्लैक में मिलता है। वही हाल गैस का हो गया है। वर्षों से हमेशा दिक्कत रहता है। इ सब गैस एजेंसी वाला जान-बुझ के सोर्टेज बना के रखता है।’’फिर तिवारीजी को मौका मिल गया, बोले, ‘‘सुन रहे हैं न ठाकुर जी। इ सब देखे वाला कान में तेल डाल के सुतल रहते हैं। महीना घरे पहुँच जाता है और क्या चाहिए।’’इस पर ठाकुर जी बोले, ‘‘भाई मिसिर बाबा आज तिवारीजी से कुछ मत बोलिए। आज पूरे मूड में हैं। फिर मजाक के मूड में बोल- तब तिवारी जी झंडा फहराने चलिएगा कि नहीं?’’इतने में तिवारीजी बोले, ‘‘आपको तो मजाक सुझ रहा हैं जाइए ! आप जाइए न आप को कोन रोका है। अच्छा-अच्छा भाषण सुन के आइएगा और बताइएगा। हम तो चलते हैंं। मेरा मूड अपने ठीक नहीं है’’इस पर मिसिर बाबा बोलते हैं, ‘‘छोरिए तिवारीजी। इ ठाकुरजी के। आइए आपको चाय पिलाते हैं। चलिए चाय पीते हैं। तो फिर मिलते हैं अगली बार इसी चाराहे पर...।
रंजन श्रीवास्तव
अच्छी लगी आपकी पत्रिका दृष्टिपात ....और रंजन जी कहानी भी अच्छी लगी ...!!
जवाब देंहटाएंहरिकांत जी आप को द़ष्टिपात की सामग्री अच्छी लगी यह मेरी सफलता है, इसमें आप की योगदान कम नहीं है, आप की प्रतिक्रिया से ही तो हम आगे बढ पाते हैं, और वैचारिक लेख, कहानी और अन्य उपयोगी सामग्री दे पाते हैं, सदैव सहयोग बनाए रखिए,
जवाब देंहटाएंअरूण कुमार झा