शनिवार, 2 मई 2009

पानी


कहीं कुछ तो है, तभी तो
सौरमंडल के सभी ग्रहों से अलग है पृथ्वी
इस पृथ्वी पर हुआ जीवन का विकास.
कहीं कुछ तो है, तभी तो
पृथ्वी पर है-मौसम, हरियाली, जीव-जन्तु
पशु-पक्षी और आदमी.

यहाँ है -पानी
पानी......पानी

पानी
कहाँ नहीं है पानी
आकाश, धरती, पाताल-
पानी
आर्द्रता, ओस, वर्षा, बादल, हवा-
पानी
कुँआ, तालाब, पोखर,
झील, नदी, सागर-
पानी
पानी ही पानी
पानी ही पानी.

पानी के देवता-इन्द्र देवता
इन्द्र देवता सबको देते हैं पानी
नाराज हो गये इन्द्र देवता तो
नहीं देंगे पानी
पड़ जाएगा सूखा, अकाल
नाराज हो गये इन्द्र देवता तो
दे देंगे इतना पानी कि
जल-मग्न हो जाएगी धरती
विनाश है दोनों हाल में
इसलिए सदा प्रसन्न रहें इन्द्र देवता तो
हरी-भरी रहेगी धरती
जिन्दा रहेंगे जीव-जन्तु
खुशहाल रहेगी धरती
इसलिए आदिकाल से पूजते रहे हैं-
पानी, पानी के श्रोत और पानी के देवता.
पानी न होता
तो कहाँ रहते शेषनाग, ब्रह्मा, विष्णु
पानी न होता
तो शिव कहाँ से उतारते धरती पर गंगा
पानी न होता
तो कैसे होता समुद्र-मंथन
पानी न होता
कहाँ पे विकसित होती सभ्यताएँ
पानी न होता
तो कृष्ण कैसे करते कालिया मर्दन
किस तट पर बजाते बाँसुरी
कहाँ पे नहाती गोपियाँ
पानी न होता
तो नल-नील कैसे बनाते पुल
पानी न होता
तो छला न जाता दुर्याेधन
न हँसती द्रौपदी
न होता महाभारत.

पानी न होता
तो कहाँ करते ग्रहण-स्नान
पानी न होता
तो कहाँ लगता कुंभ का मेला
पानी न होता
तो कहाँ सिराते हम अपना शरीर
पानी न होता
तो कैसे देते पितरों को पानी
पानी न होता
तो शर-शय्या पर लेटे भीष्म
क्यों मांगते पानी.

पानी न होता
तो क्यों शरहद पार से आती पंक्षियाँ
पानी न होता
तो कहाँ रहती मछलियाँ
पानी न होता
तो कैसे बुझती आग
पानी न होता
तो कैसे बुझती प्यास.

.पानी न होता
तो कहाँ से आता आँखों से पानी
बौखला जाता है आदमी-
जब नाक तक हो जाए पानी.

पानी के लिए
नलों पर झगड़ती हैं औरतें
पानी के लिए
मुट्ठियाँ तानते हैं राज्य
पानी के लिए
टकराने को तैयार हैं कई देश
पानी-
कहीं कुछ तो है पानी में.

आधा हो जाए पानी
तो छलकने लगती है गगरी
आधी हो जाए पानी
तो तबाह हो जाएगी दुनिया.

दुनिया बचाये धन दौलत
दुनिया बचाये मान-सम्मान
दुनिया बचाये इज्जत-आबरू
दुनिया चाहे कुछ भी बचा ले
मैं तो बचाऊँगा बूंद-बूद पानी
ताकि दुनिया को बचा सकूँ.

दुनिया को बचाऊँ
सौरमंडल में
दुनिया को बचाऊँ
विश्व युद्ध से
और यदि बचाने में
नहीं हो सका कामयाब तो
बूंद-बूंद बचाये गये पानी के किनारे
कम-से-कम
अंकुरित हो सकेगी
एक और सभ्यता.

विजय रंजन

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